Saturday, December 6, 2008

"लौ कि अस्मत पर अब सियासी चिंगारियां उठने लगी हैएक दौर था, जब आम सदका किया करते थे
रंगीन होती थी शयारों कि महफिले, उस लौ कि आगाज़ सेआतिशे आसमां होता था
वक़्त कि सियासत से, खंजर जो चली उस लौ परअब खामोश सा पड़ा रहता है, तनहा और बेजुबान ...
आज! लौ कि अस्मत पर सियासी चिंगारियां उठने लगी है"
आज जैसे देश का हर तबका जाग गया है....और एकता की उस लौ को हर शख़्स एक होकर कह रहा है....अब वक्त आ गया है कि आर पार की लड़ाई होनी ही चाहिए...आखिर कब तक हम बर्दाश्त करेंगें..इस बार आतंक का पानी सर से ऊपर उठ चुका है...और जब तक इसको पूरी तरह से विनाश नही किया जाएगा तब तक हिन्दुस्तान का एक एक शख़्स कभी चैन की नींद नही सो पाएगा....मेरी ये गुज़ारिश हैं हर हिन्दुस्तानी से कि इसी तरह एक होकर हम लड़ेंगे आतंकवाद के खिलाफ और भारत की शान हमेशा ऊंची रखेंगे....और वादा करतें हैं कि इस बार लड़ने में कोई चूक नही होगी...ये वक्त आपसी लड़ाई का नहीं बल्कि सबक सिखाने का है...

1 comment:

Satyadeep Muchhoria said...

achche vichar hai apke,,,par aj duniya bahut selfish hai,,,doosron ke bare me to sochte nahi,,Desh kae bare me kya sochenge,,,ek dusre ko katne par amada hai,,,darte hai kyoki selfish hai,,,selfish nahi hote to aj kisi Desh ki majal nhi hoti,,,ki wo hamare taraf aankh utha kar bhi dekhe...Par tum chalte raho karwa bante jayega,,,aj soya hai INSAAN,,kabhi to jagega.....